आजकल हर जगह प्लास्टिक के कचरे की भरमार है. इसे रिसायकल करना ना सिर्फ मुश्किल है, बल्कि खर्लीचा भी है. भारत में अब तो लोग इस प्लास्टिक कचरे को कच्चे तेल में बदल रहे हैं. उनके लिए मुनाफे का सौदा है. इससे उन लोगों का भी फायदा हो रहा है जिनके पास अभी एलपीजी या खाना बनाने के लिए ऊर्जा का कोई स्वच्छ साधन नहीं है.
भारत में कई गरीब घर में महिलाओं के दिन की शुरुआत आमतौर पर ऐसे ही घर के काम से होती है। उनके ऊपर परिवार के लोगों का पेट पालने की जिम्मेदारी होती है। इसलिए उन्हें हर दिन जलाने के लिए लकड़ियां और इंजन जमा करनी होती है। उनके पास केरोसिन खरीदने के लाइक के पैसे नहीं होते हैं। गरीब परिवारों को एलपीजी गैस मुहैया कराने वाले सरकारी योजना के बावजूद गरीब लोगों के पास खाने बनाने के लिए कोई स्वच्छ इंधन नहीं मिलता है तो कई बार प्लास्टिक जलाती है जो उनके आसपास मौजूद होते हैं, लेकिन इससे दिल की बीमारी सांस की बीमारी होने का खतरा पड़ता है।
भारत में हर साल 26000 टन प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है। इस तरह भारत दुनिया का 15 वा सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक है।
![]() |
भारत के कंपनी ने 2009 में Medha Tadpatrikar (founder of the company) ने चीजों को अपने हाथ में लेने का फैसला किया।
रुद्र एक भारतीय कंपनी है जिसका फाउंडर बताती है कि
हमनेपहले 3-4 महीनों में केमिकल इंजीनियर मैकेनिकल इंजीनियर प्लास्टिक से जुड़े हुए लोगों के साथ बातचीत शुरू की, फिर हमने महसूस हुआ कि प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से बनता है। वैज्ञानिक दोस्तों के साथ मिलकर कई महीनों की रिसर्च को नाकाम प्रयोगों के बाद इन दोनों ने एक टेक्नोलॉजी अप्लाई।
यह हर तरह के प्लास्टिक को उच्च गुणवत्ता वाले ईंधन में बदली है और यह इको फ्रेंडलीऔर बेहद ज्वलनशील भी होता है। इस पर प्रति लीटर ₹24 की लागत आती है। इस पॉलीफिल को सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे और प्रोसेसिंग की जरूरत नहीं होती।
जब आप इसे जलाते हैं तो इस में डीजल के मुकाबले सल्फर की मात्रा बहुत कम होती है। डीजल के लिए सफर की वेद मात्रा 80 पीपीएम होती है और हमारे पॉलीफिल फ्यूल में सल्फर की मात्रा 0.17 पीपीएम होती है जो उत्सर्जन के लिहाज से यह ज्यादा स्वच्छ इंधन है।
इसलिए जरूरी है कि लोगों को बताया जाए कि ऐसा ही प्लास्टिक इस्तेमाल करें, जिसे रीसायकल किया जा सके। इस तरह के प्लास्टिक प्रदूषण केंद्र की लड़ाई में बहुत जरूरी है। इस समूह में 34 लोग हैं।
रुद्र के फाउंडर बताते हैं कि :
हम लोगों को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में बताते हैं। समझाते हैं कि रूद्र किस तरह इको फ्रेंडली तरीके से रीसाइक्लिंग कर रहा है और क्योंकि हम यह काम 2016 से कर रहे हैं। हम लोगों को विश्वास दिला पाते हैं।
अपशिष्ट प्लास्टिक-से-तेल रूपांतरण प्रक्रिया
पुणे की एक अर्बन टाउनशिप, आदित्य गार्डन सिटी ,यहां पर यह नजारा असर दिखता है। यहां रहने वाले लगभग 100 परिवार अपने कचरे को अलग-अलग करते हैं और अपना प्लास्टिक रीसायकल करते हैं। 15 दिन में एक बार सभी परिवार एक निश्चित जगह पर अपना प्लास्टिक डालते हैं।
रूद्र से जुड़ी संस्था सीता मेमोरियल ट्रस्ट के कर्मचारी पुणे में डेढ़ सौ किलोमीटर के दायरे में से 15000 जगहों से प्लास्टिक उठाकर ले जाते हैं।
सबसे पहले हार्ड प्लास्टिक, बैग, एमएलपी और अन्य चीजों को एक दूसरे से अलग किया जाता है। प्लास्टिक को साफ कर क्रश किया जाता है। इसके बाद सब कुछ इस रिएक्टर में जाता है। इस प्रक्रिया को थर्मो कैटालिटिक डिपॉलीमराइजेशन कहते हैं। ऑक्सीजन के गैरमौजूदगी में इसे कैटालिस्ट यानी उत्प्रेरक से चलाया जाता है। प्लास्टिक प्लास्टिक के कचरे को इस रिएक्टर में जलाने के बजाय धीरे-धीरे गर्म किया जाता है। 150 से 200 डिग्री सेल्सियस पर प्लास्टिक पर गर्मी शुरू होती है जबकि 380 से लेकर 430 डिग्री के बीच का डिपॉलीमराइजेशन होने लगता है। पॉलीफिल में बच्चे तत्वों को छानकर store कर लिया जाता है और फिर उसे डिलीवरी के लिए तैयार किया जाता है।
₹40 प्रति लीटर के हिसाब से ना सिर्फ कंपनियों को बेचा जाता है बल्कि यह फ्यूल गरीबों लोगों तक भी पहुंच रहा है। रूद्र ने महाराष्ट्र और गुजरात में प्लास्टिक कचरे को रिसाइकल करने के लिए 10 प्लांट लगाए हैं और जो भी प्लास्टिक कचरा रूद्र के कर्मचारी जमा करते हैं, उसे इन प्लांटों में रीसायकल किया जाता है। प्लास्टिक कचरे से इंधन का स्क्रीन के इस तरीके को दुनिया भर में लागू किया जा सकता। ऐसा तभी होगा जब इसे व्यापक स्तर पर किया जाएगा। इस बारे में इस समय भारत और अन्य देशों में काम चल रहा है।
Post a Comment
Post a Comment